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ए॒षा स्या नव्य॒मायु॒र्दधा॑ना गू॒ढ्वी तमो॒ ज्योति॑षो॒षा अ॑बोधि । अग्र॑ एति युव॒तिरह्र॑याणा॒ प्राचि॑कित॒त्सूर्यं॑ य॒ज्ञम॒ग्निम् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

eṣā syā navyam āyur dadhānā gūḍhvī tamo jyotiṣoṣā abodhi | agra eti yuvatir ahrayāṇā prācikitat sūryaṁ yajñam agnim ||

पद पाठ

ए॒षा । स्या । नव्य॑म् । आयुः॑ । दधा॑ना । गू॒ध्वी । तमः॑ । ज्योति॑षा॑ । उ॒षाः । अ॒बो॒धि॒ । अग्रे॑ । ए॒ति॒ । यु॒व॒तिः । अह्र॑याणा । प्र । अ॒चि॒कि॒त॒त् । सूर्य॑म् । य॒ज्ञम् । अ॒ग्निम् ॥ ७.८०.२

ऋग्वेद » मण्डल:7» सूक्त:80» मन्त्र:2 | अष्टक:5» अध्याय:5» वर्ग:27» मन्त्र:2 | मण्डल:7» अनुवाक:5» मन्त्र:2


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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (अग्रे) सृष्टिरचना से प्रथम (एषा गूढ्वी) यह परमात्मा की गुह्यशक्ति (ज्योतिषा तमः) प्रकाशरूप ज्योति से तम का नाश करके (सूर्यं यज्ञं अग्निं) सूर्य, यज्ञ तथा अग्नि को (प्र) भले प्रकार (अचिकितत्) रचती और (उषाः अबोधि) उषःकाल का बोधन करती हुई वह (अह्रयाणा युवतिः) प्रकाशवती सदा युवावस्थासम्पन्न रहती है, (स्या) वह शक्ति (नव्यं आयुः दधाना) नवीन आयु को धारण करती हुई (एति) उसी परमात्मा में लय हो जाती है ॥२॥
भावार्थभाषाः - परमात्मा की दिव्य शक्ति, जिससे सृष्टि के आदिकाल में पुनः रचना होती है, वह परमात्मा की प्रकाशरूप ज्योति से प्रथम अन्धकार का नाश करती है, क्योंकि प्रलयकाल में यह सब संसार अन्धकारमय होता है, तत्पश्चात् सूर्य्य, अग्नि और यज्ञ को रचकर उषःकाल का बोधन कराती है, जिससे सब प्रजागण परमात्मा का स्तवन करते हुए अपने कार्यों में प्रवृत्त होते हैं। परमात्मा की उस दिव्य शक्ति में कभी विकार उत्पन्न नहीं होता, वह युवावस्था को प्राप्त हुई मनुष्यों को कर्मानुसार सदा बल-बुद्धि आदि नूतन भावों को प्रदान करती रहती है और अन्त में उसी परमात्मा में लय हो जाती है ॥२॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (अग्रे) सृष्टिरचनायाः प्राक् (एषा गूढ्वी) एषा परमात्मनो गुह्यशक्तिः (ज्योतिषा तमः) प्रकाशात्मकज्योतिषा तमो निरस्य (सूर्यम् यज्ञम् अग्निम्) सूर्यं यज्ञमग्निं च (प्र) सम्यक् (अचिकितत्)   रचितवती तथा (उषाः अबोधि) उषःकालं बोधयन्ती सा (अह्रयाणा युवतिः) प्रकाशवती सदा यौवनसम्पन्नेव विराजते (स्या) सा शक्तिः (नव्यम् आयुः दधाना) नूतनमायुर्धारयन्ती (एति) तस्मिन्नेव परमात्मनि लीयते ॥२॥